चंद लम्हों की जान पहचान सही
दोस्त नहीं तो अजनबी अनजान सही
जिसके साथ साथ रहा सच्ची शान रही
क्या हुआ जो कोई अपना अज़ीज़ नहीं
सदा गुज़र के लिए खींचतान रही
कुर्ता नहीं तो खाली बनियान सही
दागदार पर मेरा गिरेबान नहीं
सीने पर दिखावे की कमीज़ नहीं
सफ़र का अंतहीन सिलसिला है
भारी कदमों से धरती का दिल हिला है
नम मौसम में गम धुला घुला है
कहीं यह दुःख ही तो सुख का बीज नहीं
बेवफाईयों से नहीं अब कोई गिला है
दुखों से मुझे बहुत कुछ मिला है
मुश्किलों में मन फूल सा खिला है
अब किसी से गुस्सा नहीं खीझ नहीं
न किसी को गिरवी रखी न उधार दी
अपनी मर्जी से बिगाड़ी या संवार ली
खुले आकाश तले हंस कर गुज़ार दी
ज़िन्दगी तिजोरी में रखने की चीज़ नहीं |